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दिल तलबगार-ए-नाज़-ए-महवश है / वली दक्कनी
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दिल तलबगार-ए-नाज़-ए-महवश है
लुत्फ़ उसका अगरचे दिलकश है
मुझ सूँ क्यूँकर मिलेगा हैराँ हूँ
शोख़ है, बेवफ़ा है, सरकश है
क्या तिरी ज़ुल्फ़, क्या तिरे अबरू
हर तरफ़ सूँ मुझे कशाकश है
तुझ बिन ऐ दाग़ बख़्श, सीना-ओ-दिल
चमन-ए-लाला, दश्त-ए-आतिश है
ऐ 'वली' तर्जुबे सूँ पाया हूँ
शो'ला-ए-आह-ए-शौक़ बेग़श है