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दिल दुखाना तिरी आदत है भुलाई न गई / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

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दिल दुखाना तिरी आदत है भुलाई न गई
आह दुनिया! तिरी अंगुश्त-नुमाई न गई!

अश्क़ बहते रहे और आह दबाई न गई
दास्तान-ए-शब-ए-ग़म फिर भी सुनाई न गई

फिर वो ही ग़म है, वो ही मैं, वो ही तन्हाई है
ये लगी दिल की है ऐसी कि बुझाई न गई

रोकते रोकते आ ही गए आँसू मेरे
बात कुछ बिगड़ी फिर ऐसी कि बनाई न गई

लोग तो बात का अफ़्साना बना देते हैं
वरना क्या हम से तिरी बात निभाई न गई?

हुस्न-ए-ख़ुशकार ही बदला न वफ़ा-पेशा इश्क़
ख़ारपाशी न गई, आब्ला-पायी न गई!

क्या किसी और से कहता मैं कहानी अपनी?
मुझ से ख़ुद को भी तो ऐ दोस्त! सुनाई न गई!

रोज़-ओ-शब हाल पे हँसते रहे दुनिया वाले
फिर भी ऐ दिल! तिरी आशुफ़्ता-नवाई न गई!

इन्क़िलाब आते रहे देह्र में यूँ तो हर दम
न गई तेरी मगर तर्ज़-ए-ख़ुदाई न गई!

बात अच्छी बुरी सुनता है ज़माने भर की
फिर भी "सरवर"! तिरी ये नग़्मा-सराई न गई!