भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल ने चाहा बहुत पर मिला कुछ नहीं / देवमणि पांडेय
Kavita Kosh से
दिल ने चाहा बहुत पर मिला कुछ नहीं
ज़िन्दगी हसरतों के सिवा कुछ नहीं
उसने रुसवा सरेआम मुझको किया
उसके बारे में मैंने कहा कुछ नहीं
इश्क़ ने हमको सौग़ात में क्या दिया
ज़ख़्म ऐसे कि जिनकी दवा कुछ नहीं
पढ़के देखीं किताबें मोहब्बत की सब
आँसुओं के अलावा लिखा कुछ नहीं
हर ख़ुशी मिल भी जाए तो क्या फ़ायदा
ग़म अगर न मिले तो मज़ा कुछ नहीं
ज़िन्दगी ये बता तुझसे कैसे मिलें
जीने वालों को तेरा पता कुछ नहीं