दिल पुकारे, आरे आरे आरे / मजरूह सुल्तानपुरी
रफ़ी: दिल पुकारे, आरे आरे आरे \- २
अभी ना जा मेरे साथी
दिल पुकारे, आरे आरे आरे
लता: ओ... अभी ना जा मेरे साथी
दोनो: दिल पुकारे आरे आरे आरे
रफ़ी: बरसों बीते दिल पे काबू पाते
हम तो हारे तुम ही कुछ समझाते
लता: समझाती मैं तुमको लाखों अरमां
खो जाते हैं लब तक आते आते
रफ़ी: ओ... पूछो ना कितनी, बातें पड़ी हैं
दिल में हमारे
दिल पुकारे, आरे आरे आरे
लता: ओ... अभी ना जा मेरे साथी
दोनो: दिल पुकारे आरे आरे आरे
लता: पाके तुमको है कैसी मतवाली
आँखें मेरी बिन काजल के काली
रफ़ी: जीवन अपना मैं भी रंगीन कर लूँ
मिल जाये जो इन होठों की लाली
लता: ओ... जो भी है अपना, लायी हूँ सब कुछ
पास तुम्हारे
दिल पुकारे, आरे आरे आरे
रफ़ी: ओ... अभी ना जा मेरे साथी
दोनो: दिल पुकारे आरे आरे आरे
रफ़ी: महका महका आँचल हल्के हल्के
रह जाती हो क्यों पल्कों से मलके
लता: जैसे सूरज बन कर आये हो तुम
चल दोगे फिर दिन के ढलते ढलते
रफ़ी: ओ... आज कहो तो मोड़ दूं बढ़के
वक़्त के धारे
दिल पुकारे, आरे आरे आरे
लता: ओ... अभी ना जा मेरे साथी
दोनो: दिल पुकारे आरे आरे आरे
अभी ना जा मेरे साथी
दिल पुकारे आरे आरे आरे...