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दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं / क़तील
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दिल पे आए हुए इल्ज़ाम से पहचानते हैं
लोग अब मुझ को तेरे नाम से पहचानते हैं
आईना-दार-ए-मोहब्बत हूँ के अरबाब-ए-वफ़ा
अपने ग़म को मेरे अंजाम से पहचानते हैं
बादा ओ जाम भी इक वजह-ए-मुलाक़ात सही
हम तुझे गर्दिश-ए-अय्याम से पहचानते हैं
पौफटे क्यूँ मेरी पलकों पे सजाते हो उन्हें
ये सितारे तो मुझे शाम से पहचानते हैं