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दिल पे जब चोट लगेगी सुन लो / लाल चंद प्रार्थी 'चाँद' कुल्लुवी

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दिल पे जब चोट लगेगी सुन लो
ज़िंदगी और हँसेगी सुन लो

देखकर रंगे-सियह-बख़्ती-ए-जाँ<ref>जीवन का काला चेहरा</ref>
उम्र भी बच के चलेगी सुन लो

सुन के शहनाई के दिलकश नग़्मे
ग़म की इक लहर उठेगी सुन लो

इक ज़रा भी जो हुई लग़्ज़िशे-पा<ref>पैरों की लड़खड़ाहट</ref>
राह भी चाल चलेगी सुन लो

रात जागेगी तुम्हारे ग़म में
नींद आँखों पे हँसेगी सुन लो

हम न होंगे तो चमन होगा उदास
बू-ए-गुल हाथ मलेगी सुन लो

आशियाँ तक अगर आई बिजली
शाख़ कोई तो जलेगी सुन लो

उनसे मिलने की है बेचैनी ‘चाँद’
शाम ढलते ही ढलेगी सुन लो

शब्दार्थ
<references/>