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दिल में अपने लिख रक्खी हैं लूटपाट की तहरीरें / महेश कटारे सुगम
Kavita Kosh से
दिल में अपने लिख रक्खी हैं लूटपाट की तहरीरें ।
लेकिन घर में टाँग रखी हैं राम-कृष्ण की तस्वीरें ।
सुबह-शाम पूजा-पाठों में दो घण्टे लग जाते हैं,
फिर दिन भर ढूँढ़ा करते हैं बदमाशी की तदबीरें ।
करते हैं प्रवचन हमेशा लोभ-मोह को तजने का,
लेकिन ख़ुद ने पहन रखी हैं धन-दौलत की ज़ंजीरें ।
सेवक बने सियासत में तो सामन्तों के बापों से,
ऐश-तैश धन ज़ोर-जुल्म की खड़ी कर रखी जागीरें ।
चौराहे सब सजे हुए थे लोग खड़े थे सड़कों पर,
भाषण ऐसा दिया कि जैसे बदल रहे हों तक़दीरें ।