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दिल में खुशी नहीं है लब पर हंसी नहीं है / रविकांत अनमोल

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दिल में खुशी नहीं है लब पर हंसी नहीं है
वो आँख कौन सी है जिस में नमी नहीं है

कैसे कहेंगे इसको मौसम बहार का हम
इक शाख़ भी चमन में यारो हरी नहीं है

बाज़ार में खड़ा हूँ हर इक को देखता हूँ
समझे जो बात मेरी ऐसा कोई नहीं है

पैग़ंबरी का दावा मुझको नहीं है हरगिज़
यह मेरी शाइरी है पैग़ंबरी नहीं है

उसके जलाल की जो फिर याद कर दे ताज़ा
वो बर्क़ आसमां से अब तक गिरी नहीं है

यह वक़्ते नीम शब है अब अपने घर को जाओ
उस घर की कोई खिड़की अब तो खुली नहीं है

ख़ुद ही बनाना होगा 'अनमोल' अपना रस्ता
थामे जो हाथ कोई यह वो सदी नहीं है