भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल में बच्चे / सुरेश यादव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


गलियों में गुमसुम बच्चे
जब - खुलकर हँसते हैं
फूलों से भर जाती खुशबू
रंग फूलों में खिलते हैं
आँगन में
जब जब शोर मचाती
इन बच्चों की किलकारी
चटख रंगों की
फागुन में जैसे
मौसम की पिचकारी
हँसते - गाते धूम मचाते
दिल को दिल की राह बताते
बैर-भाव सब भूल भालकर
रोज़ गले सब मिलते हैं
बच्चे जिनके दिल में बसते हैं।