भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दिल में हम एक ही जज्बे को समोएँ कैसे / अहमद नदीम क़ासमी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दिल में हम एक ही जज्बे को समोएँ कैसे,
अब तुझे पा के यह उलझन है के खोये कैसे,

ज़हन छलनी जो किया है, तो यह मजबूरी है,
जितने कांटे हैं, वोह तलवों में पिरोयें कैसे,

हम ने माना के बहुत देर है हश्र आने तक,
चार जानिब तेरी आहट हो तो सोयें कैसे,

कितनी हसरत थी, तुझे पास बिठा कर रोते,
अब यह-यह मुश्किल है, तेरे सामने रोयें कैसे