दिल लुभाती रही रात भर चांदनी 
मुस्कुराती रही रात भर चांदनी 
जाने किस मीत के प्रीत का गीत ही 
गुनगुनाती रही रात भर चांदनी 
द्वार पर देख तारों की बारात को 
बस लजाती रही रात भर चांदनी 
छोड़कर आ गयी नभ मगर भूमि पर 
छटपटाती रही रात भर चांदनी 
ताल पर जाल किरणों का ले के भला 
क्या फंसाती रही रात भर चांदनी ?