भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिल लेकर न करो इनकार / तारा सिंह
Kavita Kosh से
दिल लेकर न करो इनकार, करीब आ जाओ
करीब है शबे गमे का शहर, करीब आ जाओ
मुझको छूकर मेरी नस-नस में शरारें भर दो
याद रह जायेगी ये रात, करीब आ जाओ
विरह आग उगल रहे हैं बदन में अंगारे जल-जल के
हुए जा रहे हैं खाक, करीब आ जाओ
एक मुद्दत से सोया नहीं मैं रातों को
हर वक्त आती है तुम्हारी याद,करीब आ जाओ
अपने चेहरे से लहराते गेसुओं को हटा लो तुम
जान ले लेगा ये लट, करीब आ जाओ
दम के रूकते ही निकल पड़ते हैं आँसू
नजर परेशां, साँस रहती बे-ताब,करीब आ जाओ
गमे दिल किससे कहूँ, कोई गमख्वार नहीं मिलता
गमख्वारों में तुम एक हो खास, करीब आ जाओ