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दिल लेकर न करो इनकार / तारा सिंह

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दिल लेकर न करो इनकार, करीब आ जाओ
करीब है शबे गमे का शहर, करीब आ जाओ

मुझको छूकर मेरी नस-नस में शरारें भर दो
याद रह जायेगी ये रात, करीब आ जाओ

विरह आग उगल रहे हैं बदन में अंगारे जल-जल के
हुए जा रहे हैं खाक, करीब आ जाओ

एक मुद्दत से सोया नहीं मैं रातों को
हर वक्त आती है तुम्हारी याद,करीब आ जाओ

अपने चेहरे से लहराते गेसुओं को हटा लो तुम
जान ले लेगा ये लट, करीब आ जाओ

दम के रूकते ही निकल पड़ते हैं आँसू
नजर परेशां, साँस रहती बे-ताब,करीब आ जाओ

गमे दिल किससे कहूँ, कोई गमख्वार नहीं मिलता
गमख्वारों में तुम एक हो खास, करीब आ जाओ