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दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई / 'शाएर' क़ज़लबाश
Kavita Kosh से
दिल सर्द हो गया है तबीअत बुझी हुई
अब क्या है वो उतर गई नद्दी चढ़ी हुई
तुम जान दे के लेते हो ये भी नई हुई
लेते नहीं सख़ी तो कोई चीज़ दी हुई
इस टूटे फूटे दिल को न छेड़ो परे हटो
क्या कर रहे हो आग है इस में दबी हुई
लो हम बताएँ ग़ुंचा ओ गुल में है फ़र्क़ क्या
इक बात है कही हुई इक बे-कही हुई
ख़ूँ-रेज़ जिस क़दर हैं वो रहते हैं सर-निगूँ
ख़ंजर हुआ कटार हुई या छुरी हुई
'शाएर' ख़ुदा के वास्ते तौबा का क्या क़ुसूर
है किस के मुँह से फिर ये सुबूही लगी हुई