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दिवाली के दीपक / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
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पतझर को मधुमास बनाते दीवाली के दीपक।
दंश रूदन को हास बनाते दीवाली के दीपक।
ज्योति-पर्व सोल्लास विश्वविजयी-सा मुस्काता है-
धरती को आकाश बनाते दीवाली के दीपक।
पुनर्जागरण से अपनापन हर्षित-उत्कर्षित है,
गैरों को भी खास बनाते दीवाली के दीपक।
बिखराते आलोक लोक जगमग-जगमग होता है,
अंधियारों को दास बनाते दीवाली के दीपक।
कहीं रंच भी प्राणवन्त तम नहीं दिखायी देता,
इतना प्रबल प्रकाश बनाते दीवाली के दीपक।
चारों ओर उजालों के अम्बर लगे हैं, फिर भी-
तुम बिन मुझे उदास बनाते दीवाली के दीपक।