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दिशाओं के बहाने / दिविक रमेश

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दिशाओ

मुझे कुछ नही कहना,

कोई प्रश्न नहीं मेरा

आकाश उतरा है मेरे भीतर

मेरे चारों ओर

लटक गए हैं लक्ष्य ।

यह भीतर

कौन जन्म ले रहा है ?

कैसा आकार ले रहा है ?


पैर ग़ायब

हाथ निष्क्रिय

ढुलका हुआ शरीर

दिमाग़ एक बोझ

जो... मुझे ढोना है ।