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दीठ’र जीभ / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
नाख’र देख
चींणी रो कण
मंड ज्यासी
मकोड़ां रो मगरियो,
नाख’ र देख
लूण रो कण
कोनी आवै
जाणै हुग्यो हुवै
कोई कजियो
धोळो हुवै मिठास रो रंग
धोळो हुवै खरास रो रंग
पण न्यारो न्यारो है
दीठ जीभ रो
धरम ।