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दीपक था वो और नियति में जलते रहना था / राघव शुक्ल

वही रात की दुल्हनिया का अनुपम गहना था
दीपक था वो और नियति में जलते रहना था

सैनिक था वो अँधियारे से लड़ने आया था
बाती की बन्दूक और चिंगारी लाया था
अँधियारे को धूल चटाई थी हथियारों से
और हवा को मल्लयुद्ध में सबक सिखाया था
विजय मुकुट फिर अपने माथे जिसने पहना था
दीपक था वो और नियति में जलते रहना था

रजनी भी खुश हुई विजेता प्रियतम को पाकर
दीपक ने भर लिया बाँह में किरणें फैलाकर
सूरज के हाथों में फिर जलती मशाल देकर
फैलाओ उजियार भोर में बोला समझाकर
और रात मैं फिर आऊँगा उसका कहना था
दीपक था वो और नियति में जलते रहना था