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दीपक ने कब सोचा आकर उसको कौन जलाता है / रंजना वर्मा

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दीपक ने कब सोचा आ कर उसको कौन जलाता है
उसका तो जगती से तिमिर मिटाने भर का नाता है

जलता दीपक झोंपड़ियों में या फिर महल अटारी में
वह तो भर मस्ती में अपनी किरणें सतत लुटाता है

दीपक बन जीने वालों का कब घर होता है कोई
उनको तो दुनियाँ में केवल पर हित करना आता है

कुछ आंखों के आँसू भी यदि पोछ कभी हम पायें तो
मिल जाती है शांति हृदय को जनम सगल हो जाता है

जीवन पाया मानव का तो मानवता के कर्म करें
वरना खाना पीना सोना पशुओं को भी आता है