दीपक विश्वास के
 
आंखों में 
कौंध रहे 
सपने आकाश के 
आओ हम जला धरें  
दीपक विश्वास के
 
सत्कर्मों   
की बाती 
तेल भरें नेह का 
अंधियारा दूर करे 
हम अपने गेह का 
पांवों में चुभें  नहीं 
कांटे संत्रास के
 
दमक उठे 
मुन्डेरी 
दमक उठे द्वार 
सूरज भी 
शीश झुका 
स्वीकारे हार 
जीवन की बगिया में 
फूल खिलें आस के।