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दीप जलता रहे / मनोज जैन मधुर
Kavita Kosh से
नेह के
ताप से
तम पिघलता रहे
दीप जलता रहे
शीश पर
सिंधुजा का
वरद हस्त हो
आसुरी
शक्ति का
हौसला पस्त हो
लाभ-शुभ की
घरों में
बहुलता रहे
दीप जलता रहे
दृष्टि में
ज्ञान-विज्ञान
का वास हो
नैन में
प्रीत का दर्श
उल्लास हो
चक्र-समृद्धि का
नित्य
चलता रहे
दीप जलता रहे
धान्य-धन
सम्पदा
नित्य बढ़ती रहे
बेल यश
की सदा
उर्ध्व चढ़ती रहे
हर्ष से
बल्लियों दिल
उछलता रहे
दीप जलता रहे
हर कुटी
के लिए
एक संदीप हो
प्रज्ज्वलित
प्रेम से
प्रेम का दीप हो
तोष
नीरोगता की
प्रबलता रहे
दीप जलता रहे