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दीप जलाओ / महेन्द्र भटनागर

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आँगन-आँगन दीप जलाओ,
दीपों का त्योहार मनाओ !

स्वर्णिम आभा घर-घर बिखरे
मनहर आनन, कन-कन निखरे

ज्योतिर्मय सागर लहराये
काली-काली रात सजाओ !

निशि अलकों में भर-भर रोली
नाचें जगमग किरनें भोली

आलोक घटा घिर-घिर आये,
सारी सुधबुध भूल नहाओ !

हर उर अभिनव नेह भरा हो
युग-युग रोयी धन्य धरा हो,

चलो सुहागिन, थाल उठाओ
नभ-गंगा में दीप बहाओ !