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दीमक और दिन रात / शीन काफ़ निज़ाम
Kavita Kosh से
कहाँ-कहाँ से
बटोरते फिरोगे
इबारतें-
बदबू पर बंधते नहीं बांध
सायों की सय्याहत में
दीमकों-से
चाटते रहोगे दिन रात
कब तक?
मेरी मानो
ख़ामोशी के ख़ार चुनो
चुपके से जीओ और
चले जाओ!