दीया ल बार दे / नूतन प्रसाद शर्मा
बार दे बार दे बार दे तंय दीया ल बार दे।
लगे हे अंधियार के खिड़की जम्मों ल उजियार दे।
बिजरावत हमल अंधियार हर बार के देखो तो एक बार
जइसे बिलई हर मुसवा खाथय, अंधियार के खुंटी उजार
ये दीया कभू झन बुताये अइसन तेल ल डार दे।
जिंहा जाय नइ चंदा सूरज, दीया ह आथय उंहा काम
चुप्पे सपटे रहिथे अंधेरा, दीया ल बीन बीन के खात
ज्ञानी गुनी दीया ल संगी पियार दे दुलार दे।
बत्तर हे अंधियार के वासी, दीया बुझाये के करथे काम
कहिथे तोर अंजोर करे मं मिट जाथे संगी के नाम
मर जाथय जर के बत्तर दीया के जय उतार दे।
परमारथ बर दीया बिचारा खुद के तन ल देथे बार
जम्मों जगत ल बांट उजियारा,अपन तरी रखथे अंधियार
दुख पाके सुख बटइया ल दया मया के धार दे।
बत्तर के संगवारी हवा हर, आथे दल बादल के साथ
दीया के तीर टिक्की नइ लागय, पल्ला भागथे रोवत गात
बलि दीया के नाव ल संगी दसो दिशा परचार दे।