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दीवारों पर लिखा इंक़लाब अब जिंदाबाद नहीं है / रोहित ठाकुर
Kavita Kosh से
वह दिशा जिसे पूरब
कहते हो
वह दिशा पूरब
आरक्षित है सूरज के लिए
तुम जिसे धूप
कहते हो
वह तुम्हारे अस्तित्व को
छाया में बदल देती है
तुम जिसे बारिश
कहते हो
वह तुम्हारे शरीर का पानी है
तुम जिसे अपने रगों में दौड़ता खून
कहते हो
देखो वह सदियों से जमा है
हुकूमत की प्रयोगशाला में
जिसे तुम डर
कहते हो
वह तुम्हारी आँखों में उतना ही है
जितना उनकी आँखों में
इस डर को कम करने के लिए
तुम अपने विकल्प को
कहते हो
प्रार्थना
वे अपने विकल्प को
कहते हैं
आत्ममुग्धता
तुम जिसे लोकतंत्र
कहते हो
उसे वे
कहते हैं
सर्कस
तुम जिसे स्वतंत्रता
कहते हो
उसे वे सर्वाधिकार्रवाद
कहते हैं