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दीवार के पार एक औरत की आवाज़ / अमरजीत कौंके

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दीवार के पार
एक औरत की आवाज़ आती है
कभी वह अपने बच्चों को
और कभी अपने पति को बुलाती है

मैं इस औरत को जानता तक नहीं
ना ही देखा है मैंने इसे कभी
लेकिन अनदेखी इस औरत की आवाज़
मेरी शून्य-संध्या का संगीत है
मेरे उदास पलों में
तोड़ कर मेरी खामोषी का दायरा
आती है जो पास मेरे

इस औरत की आवाज़
बताती है मुझे
कि मेरी उदासी के ऐन पड़ोस में
घरों का एक निरंतर सिलसिला है
जहाँ अभी भी आवाज़ें हैं
किसी भी तोड़ देने वाली
खामोषी के खिलाफ़

आवाज़ें हैं
जिन्हें सुन कर
अभी भी लौटा जा सकता है
घरों को।