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दुआ में हाथ जब मेरे उठे, परवान लगते हैं / हरकीरत हीर

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दुआ में हाथ जब मेरे उठे, परवान लगते हैं
ये पत्थर भी न जाने क्यों मुझे भगवान लगते हैं

कहीं कोई घना ग़म है, जो हँसते आप बेजा से
छिपाये दिल में कोई, दर्द का तूफ़ान लगते हैं

करें दिन रात मजदूरी नहीं घर बार फ़िर कोई
ये इनसां क्यूँ मुझे इक दर्द की मुस्कान लगते हैं

ये बिंदी, चूड़ियाँ, पायल, ये बिछुये, बालियाँ, कंगन
ये हैं पहचान भारत की, ये हिन्दुस्तान लगते हैं

कभी हँसतीं थी खुशियाँ बन बहारें दिल के गुलशन में
जुदा जब से हुए आबाद घर वीरान लगते हैं

बना रिश्ता नहीं कोई हमारे बीच तो क्या है
अभी मेरी मुहब्बत से ज़रा अनजान लगते हैं