भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुखों के रूप बहुत और सुखों के ख़्वाब बहुत / तनवीर अंजुम
Kavita Kosh से
दुखों के रूप बहुत और सुखों के ख़्वाब बहुत
तिरा करम है बहुत पर मिरे अज़ाब बहुत
तू कितना दूर भी है किस क़दर क़रीब भी है
बड़ा है हिज्र का सहरा-ए-पुर-सराब बहुत
हक़ीक़त-ए-शब-ए-हिज्राँ के राज़ खोए गए
तवील दिल हैं बड़े रास्ते ख़राब बहुत
चलेंगे कितना तिरे ग़म के साथ साथ क़दम
शिकंजा-हा-ए-ज़माना हैं बे-हिसाब बहुत
उतर गया है ख़ुमार-ए-शराब-ए-ज़ात कहीं
हुए हैं गर्दिश-ए-दौराँ से फै़ज़याब बहुत