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दुख की बदली बिना कहे छा जाती है / सुधेश
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दुख की बदली बिना कहे छा जाती है
पर चन्दा की कोर चमक मुस्काती है।
सुधा वर्षिणी शुभ़ चाँदनी खिली हुई
क्यों वियोग ज्वाला सी मुझे जलाती है।
ठूँठ नहीं खिल पाता सौ मधुमासों में
मरघट के पेड़ों पर कोयल गाती है।
मेरे रोगों की तो कोई दवा नहीं
मन खिलता जब तेरी चिट्ठी आती है।
तुम आये सारे दुखड़े काफ़ूर हुए
जाने पर क्यों याद तुम्हारी आती है।
जन्म दिवस या मरण दिवस हो गांधी का
दुनिया बस छुट्टी की ख़ुशी मनाती है।
जीवन नाम जागने सोने भर का है
ज़िन्दगी जगाती बस मौत सुलाती है।