दुख को सुमुख बनाओ, गाओ !
	काली घटा छंटेगी कैसे ?
रिमझिम-रिमझिम स्वर बरसाओ !
	कौन सुने करुणा की वाणी ?
	दीन दृगों के आँसू पानी !
	पर अगीत संगीत अभी भी, -
इसका लयमय भेद बताओ !
	असह सहो दृढ़ प्राण बनाओ,
	अश्रुकणों को गान बनाओ,
	जब सुख छिटके चन्द्रकिरण बन 
सजल नयन झुक, चुप हो जाओ ! 
			('उत्पल दल')