भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुख देते मात पिता को वे नहीं धरम के लाल जी / हरियाणवी
Kavita Kosh से
हरियाणवी लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
दुख देते मात पिता को वे नहीं धरम के लाल जी
खल होंदे ना सरमांदे करदे हैं उलटे धंदे
कंस नै मात पिता किए अंधे दीनै भोरै मैं रे डाल जी
दुख देते...
रावण दुरयोधन सिसुपाला करा सबी कुटम का गाला
नहुस बी कर गए चाला लिए जूड़ रिसी ततकाल जी
दुख देते...