भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुख दे या रूसवाई दे / सलीम अहमद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दुख दे या रूसवाई दे
ग़म को मिरे गहराई दे

अपने लम्स को ज़िंदा कर
हाथों को बीनाई दे

मुझ से कोई ऐसी बात
बिल बोले जो सुनाई दे

जितना आँख से कम देखूँ
उतनी दूर दिखाई दे

इस शिद्दत से ज़ाहिर हो
अँधों को भी सुझाई दें

उफ़ुक़ उफु़क़ घर आँगन है
आँगन पारसाई दे