Last modified on 17 अगस्त 2013, at 10:49

दुख दे या रूसवाई दे / सलीम अहमद

दुख दे या रूसवाई दे
ग़म को मिरे गहराई दे

अपने लम्स को ज़िंदा कर
हाथों को बीनाई दे

मुझ से कोई ऐसी बात
बिल बोले जो सुनाई दे

जितना आँख से कम देखूँ
उतनी दूर दिखाई दे

इस शिद्दत से ज़ाहिर हो
अँधों को भी सुझाई दें

उफ़ुक़ उफु़क़ घर आँगन है
आँगन पारसाई दे