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दुख से मथित व्यथित यदि तू चित / सुमित्रानंदन पंत

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दुख से मथित, व्यथित यदि तू नित
क्षुब्ध न हो रे, विधि गति अविदित!
पर से निज दुख बदल, यही सुख,
व्यर्थ न रो रे, पी मदिरामृत!
हृदय पात्र भर, प्रणय क्षात्र बन,
विस्मृति में कर सुख दुख मज्जित,
स्वप्न फेन कण जीवन के क्षण
हँस हँस साक़ी को कर अर्पित!