भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुनिया-अेक / ॠतुप्रिया
Kavita Kosh से
मिनख नै
सगळै जीवां में
सिरेकार कुण कैयौ
म्हूं तो नीं कैवूं
प्रकृति सूं जुडिय़ोड़ा
सगळा जिनावर जाणै
प्रेम री भासा
पण मिनख
क्यूं जीवै
आपरी अळगी दुनिया में।