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दुनिया की तरफ़ / ब्रज श्रीवास्तव

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वह जगह ऐसी है
जहाँ टिकते ही नहीं पाँव
जहाँ पहुँचने के लिए
लोग स्पर्धा में तल्लीन हैं

किसी की निगाह में जो हँस हैं
वे चिड़िया ही हैं नए आकाश में
कुछ पक्षी तो उसे शामिल ही नहीं मानते
अच्छी बिरादरी की चिड़ियों में

अचरज है जब अट्टालिकाओं की स्पर्धा भी है
तब दौड़े तमगों के वास्ते हैं

सारे तमगों को अपने नाम करने की स्पर्धा है
तब केवल यहाँ कुछ अवलोकन है
कैसे बदलते हैं लोगों के रुख़
बात को कैसे मोड़ा जाता है अपने पक्ष में
अर्थों में कैसे बैठाया जाए अपने शब्द को

देख रहे हैं इस तरह दुनिया की तरफ़
वह देखती है कैसे यहाँ की चीज़
कैसे बौखलाती है
कैसे खीझती है
कैसे रह पाती है बेअसर
या कैसे मुस्कराती है