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दुनिया बदलने के लिए / मिथिलेश श्रीवास्तव

वे दुनिया को बदलना चाहते हैं
बिखरी हुई किताबों को शेल्फ़ में
क़रीने से सजाते हैं
रंगीन जिल्दों को ग़ौर से देखते हैं
जिल्द की प्रौद्योगिकी पर निहाल होते हैं
कई दिनों से टेबल पर रखे रह गए शीशे के पारदर्शी
गिलास
वे उठाकर रख आते हैं रसोई-घर में
टेबल से नीचे गिरी हुई कंघी के दाँतों पर
उँगलियाँ ऐसे फिराते हैं
जैसे झाड़ चुके हों दुनिया की सारी गन्दगी
एक सुरीली आवाज़ के साथ
अंतत: उसे ड्रेसिंग टेबिल पर रख आते हैं
बदबूदार मोज़ों को स्नानघर में फेंक आते हैं
फ़ौरन बदल देते हैं
गन्दे पर्दे फ़्यूज बल्ब और पुराने डस्टबिन ।

कुछ समय के लिए खिड़कियाँ वे खोल देते हैं
कुछ देर इत्मीनान से सोचते हैं
और क्या करना है

जूते बाहर उतार कर अन्दर आते हैं
पूरी दुनिया को पवित्र होते देखते हैं
सोफ़े की जगह बदल देते हैं हर हफ़्ते
अपने पर इठलाते हैं ।

दुनिया बदलने ही वाली होती है कि अचानक
बन्द पड़े फ़्रिज का दरवाज़ा खुल जाता है
एक बदबू फैल जाती है चारों ओर ।