भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुपहरी-2 / नंदकिशोर आचार्य
Kavita Kosh से
घने झुरमुट में बिछी
है पत्तों की शैय्या
सो रही है छाया
चुपके-से आ कर
चूमता सूरज—
लजाती हुई छाया
सेज पर कुछ सरक जाती है
—जगह करती हुई ।
—
27 अगस्त 2009