भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दुर्घटना / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
कद हो
इस्यो बगत
जद नहीं रया हुवै
राग धेख
लूंट खसोट
हिंसा, दुराचरण ?
उठयो है
हरेक जुग में
पशुपणै स्यंूं ऊपर
कोई
एकाध मिनख
करती रही
जकै री संवेदणा
समाज रो मारग दरसण
जठै तांई नहीं बणग्या
बीं रा सबद
सासतर !