भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दुल्हिन / राजकुमार

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़ी सूनोॅ-सूनोॅ लागै छै, दुल्हिन बिना
बड़ी दुल्हिन बिना, हमरोॅ घोॅर-ऐंगना
बड़ी सूनोॅ-सूनोॅ....

गेली नुनुआ के संग, लेनें सबटा उमंग
उचटी गेलोॅ सब रंग, मोॅन लागै पतंग
शेष जिनगी रोॅ जोगी केॅ, रहबोॅ केना
बड़ी सूनोॅ-सूनोॅ....

लागै सगरे उझंख, मारै रही-रही डंक
कुंद चिरईं रोॅ पंख, लोटै बगिया में भंख
चहक अब नैं छै, बढ़लॉ दरद कै गुना
बड़ी सूनोॅ-सूनोॅ....

लागै उचरिंग रं मोॅन, छेलै कल तक मगोॅन
हेरी-हेरी केॅ गगोॅन, ‘राज’ भरलोॅ नयोॅन
आय दुल्हिन बिन, मुरझैली तुलसी-हिना
बड़ी सूनोॅ-सूनोॅ....