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दुश्मने जाँ सामने हो तो ख़ता अच्छी लगे / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
दुश्मने जाँ सामने हो तो ख़ता अच्छी लगे
खु़द वो अपने हाथ से दे तो सजा अच्छी लगे।
इस तरह वो दिल के साँचें में हमारे ढल गयी
जब हँसे अच्छी लगे, जब हो खफ़ा अच्छी लगे।
गेसुओं की छाँव हो तो हर बला मंजूर है
बिजलियाँ अच्छी लगें,काली घटा अच्छी लगे।
वो हमारे साथ है तो फिक्र फिर किस बात की
गर्मियाँ अच्छी लगें, बादे-सबा अच्छी लगे।