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दुश्मन-ए-जाँ कई क़बील हुए / नोशी गिलानी
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दुश्मन-ए-जाँ कई क़बील हुए
फिर भी ख़ुशबू के हाथ पीले हुए
बद-गुमानी के सर्द मौसम में
मेरी गुड़िया के हाथ नीले हुए
जब ज़मीं की ज़बाँ चटख़ने लग
तब कहीं बारिशों के हीले हुए
वक़्त ने ख़ाक वो उड़ाई है
शहर आबाद थे जो टीले हुए
जब परिंदों की साँस रूकने लगी
तब हवाओं के कुछ वसील हुए
कोई बारिश थी बद-गुमानी की
सारे काग़ज़ ही दिल के गीले हुए