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दुश्मन / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
हमारे दुश्मन अमूर्त हैं
उनके हमला करने की तकनीक
आधुनिक है
हमला होने के बाद हमें पता चलता है कि
हम उनकी हिंसा का शिकार हो गए हैं
वे हवाओं में मिल जाते हैं
पानी में घुल जाते हैं
अन्त तक हमें उनके होने का
पता नहीं चलता
वे छीन रहे है हमारी प्राण–वायु
हमें निहत्था और शक्तिहीन
बना रहे हैं
कविता में कही इस बात को
सोच कर देखिए – हम कितने
ख़तरे में पड़ गए हैं