भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दूजौ फेरौ / अर्जुनदेव चारण
Kavita Kosh से
म्हैं
जलम भर
करती रैवूंला
थारै सूं प्रीत
थूं ई
कदेई कदेई
म्हारै कांनी देखजे
म्हैं
जिणती रैवूंला
थारै सारूं बेटा
थूं
कदेई कदेई
घरै आवजे
लो म्हैं
दूजौ फेरौ लेवूं