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दूध बिखर गया है आकाश में / सिर्गेय येसेनिन / अनिल जनविजय

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जैसे दूध बिखर गया है दूर तक आकाश में,
और पनीर के टुकड़े-सा चाँद लटक रहा है।
यहाँ बात सिर्फ़ खाने-पीने की ही नहीं है
दिल में है दर्द मेरे, दिल कहीं भटक रहा है।

कुछ खाने का मन है, पर अब समय नहीं है
दाँतों पर कुरकुरा-सा कुछ कुरकुरा रहा है।
इन्तज़ार है ख़ुशी का, छोटी-सी एक हँसी का
हँसती है मेरी क़िस्मत, मेरा भाग्य मुस्कुरा रहा है।

जलती हुई बहुत-सी, कामनाएँ हैं मेरे मन में
पर आत्मा है रोगी बसी हुई इस तन में
समय आ गया है अब तो, ताबूत पे मेरे रख दो
क्वास (कांजी) औ’ खीर का कटोरा, जो रखते हैं कफ़न पे।

9 जुलाई 1916

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
             Сергей Есенин
        Небо сметаной обмазано…

Небо сметаной обмазано,
Месяц как сырный кусок.
Только не с пищею связано
Сердце, больной уголок.

Хочется есть, да не этого,
Что так шуршит на зубу.
Жду я веселого, светлого,
Как молодую судьбу.

Жгуче желания множат
Душу больную мою,
Но и на гроб мне положат
С квасом крутую кутью.

9 июля 1916