भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूरदरसण / ओम पुरोहित कागद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


लोगां रा सुपना रो रूखाळो !
भौतिक जुग री
जकी चीजां नै
मध्यम वर्ग रो मिनख
जुटाणो छोड‘र
देख तक नीं सकै
उण नै दिखावै
मिनख उछळ परो
खोस नीं लेवै
इण खातर
आडो काच राखै
अर
दूरदरसण कहावै।