दूरि गमन से अयलन कवन दुलहा / मगही
दूरि गमन<ref>दूर से चलकर</ref> से अयलन कवन दुलहा, दुअराहिं भरि गेल साँझ<ref>भरि गेल साँझ = संध्या हो गई</ref> हे।
केने<ref>किधर</ref> गेल, किआ भेल सुगइ कवन सुगइ, कोहबर के करू न विचार हे॥1॥
एक हम राजा के बेटी, दूसरे पंडितवा के बहिनी, हम से न होतइ बिचार हे।
अतना बचनियाँ जब सुनलन कवन दुलहा, घोड़े पीठे भेलन असवार हे॥2॥
अतना बचनियाँ जब सुनलन कवन सुगइ,
पटुक<ref>चादर</ref> झारिए झुरिए<ref>झाड़कर</ref> उठलन कवन सुगइ।
पकड़ले घोरा<ref>घोड़ा</ref> के लगाम हे।
अपने तो जाहथि<ref>जा रहे हैं</ref> जी परभु, ओहे रे तिरहुत देसवा,
हमरा के<ref>किसे</ref> सौंपले जाएब जी॥3॥
नइहर में हव<ref>हैं</ref> धनि, माय बाप अउरो सहोदर भाई,
ससुरा में हव छतरीराज<ref>क्षत्रियराज</ref> हे॥4॥
बिनु रे माय बाप, कइसन हे नइहर लोगवा, बिनु सामी नहीं ससुरार हे।
किआ<ref>किस, कौन</ref> काम देथिन<ref>देंगे</ref> जी परभु, माय बाप अउरो सहोदर भाई,
चाहे काम देथिन छतरीराज हे?॥5॥