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दूर अभी दिन पूरी तरह ढला नहीं
वृक्षों की छाया अब भी धरती पर गिरती है
इस बाग की छवि लगे है रुपहली
रहस्यमयी मृदुल वह सरल-सी दिखती है
उग आया है चाँद अभी से सजा-धजा
सकुचाया है शायद वसन्त की धूप से
जल-दर्पण में देख रहा है वह छवि अपनी
घबराया है अस्ताचल के इस रूप से
कल फिर झाँकेगा इसी समय, इसी तरह
कल फिर दिखाई देगा वह निपट अकेला
मुझे भाए यह वसंतकाल और तेरी छवि
पर दूर लगे है अभी अपने प्यार की वेला
(1909)
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय