भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूर कहीं बांसुरी बजाता है / रामनरेश पाठक

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रात है, मौन हैं, सन्नाटा है
दूर कहीं बांसुरी बजाता है

झील, चांदनी, हवा, तनिक सुनकी
नाव डमन सी तैरे बह बहकी

गाता है, क्रौंच है, अघाता है
दूर कहीं बांसुरी बजाता है

रतिक सुगबुगी ज़वा, क्षणिक सिहरी
देह ध्रुपद-सी सैरे री हहरी

प्राण है, सौंध है, कँपाता है
दूर कहीं बांसुरी बजाता है

आग लीलती, अवा, अधिक जलती
और कामायनी बुनकर पढ़ती

रास है, नृत्य है, नचाता है
दूर कहीं बांसुरी बजाता है