भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

दूर देस रा पांवणां / कुंदन माली

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हरखपणो
अज्ञातवासो
अबखायां रो
बारामासी
जद सू
होया
सुख रा दिन
दूर देस रा
पांवणां

रैया
किस्या अब
हिलणा-मिलणा
किस्या
आवणा-जावणा ?