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दूर बहुत हैं चाँद-सितारे / विनोद तिवारी
Kavita Kosh से
दूर बहुत हैं चाँद सितारे
छोटे-छोटे हाथ हमारे
बेईमान निकले उजियारे
अँधियारों ने पाँव पसारे
उस बस्ती में आग बहुत है
और फूस के छप्पर सारे
हमने ख़ुद वह राह चुनी है
जिसपर बिछे हुए अंगारे
जागो-जागो टेरें सखियाँ
लेकिन सोये मोहन प्यारे
भूल गए स्वर ताल हिराने
मौसम कहता है कुछ गा रे
पीड़ा ने उपहार दिए हैं
आँचल में कुछ आँसू खारे