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दूर रहना तो अब दूर की बात है, पास भी अब तो आया नहीं जाएगा / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'

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दूर रहना तो अब दूर की बात है, पास भी अब तो आया नहीं जाएगा
हमने तुमसे जो वादा किया था कभी, अब वो वादा निभाया नहीं जाएगा

दिन तो कट जाएगा दूर रहकर सनम, रात आई तो बढ़ जाएंगे दिल के ग़म
याद आकर मुझे तेरी तड़पाएगी, कोई भी गीत गाया नहीं जाएगा

आशिकों की गिज़ा ये ही दिन रैन है, ग़म हैं खाने को और अश्क़ पीने को हैं
देन है ये विधाता की, इस देन से, यार दामन बचाया नहीं जाएगा

पहले शरमाए, मुस्काए, पास आए कुछ, मेरी अर्ज़े-तमन्ना पे कहने लगे
दूर से बात कीजेगा बस दूर से, अब गले से लगाया नहीं जाएगा

हम न बह जाएं दुनिया के सैलाब में, क्या ही अच्छा हो बचने की कोशिश करें
ज़द में सैलाब की हम अगर आ गए, तो कनारे पे लाया नहीं जाएगा

डांटकर बाप बच्चे से कहने लगा, ले खिलौना, खिलौना नहीं तोड़ना
दिन गरीबी के हैं पास पैसा नहीं, और खिलौना दिलाया नहीं जाएगा

लोगो ईशवर की इच्छा के आगे कभी, आपकी और मेरी चलेगी नहीं
उसकी इच्छा न हो, लाख कोशिश करें, हमसे पत्ता हिलाया नहीं जाएगा

मैं 'रक़ीब'-ए-हक़ीक़त नहीं दोस्तो, लोग जो कुछ भी कहते हैं कहते रहें
तुम न कहना कभी, तुम कहोगे तो फिर, मुझसे ये ग़म उठाया नहीं जाएगा